तुम मेरे प्रेम में
यादों के श्रृंगार से सजती हो…
तुम मेरी कुछ तो लगती हो…
नहीं हासिल
तुम्हारी कलाईयों को
मेरी चूड़ियों की खनक…
धड़कनों की लय संग
इश्क़ की धुनों सी खनकती हो
तुम मेरी कुछ तो लगती हो…
नहीं नसीब
तुम्हारी हथेलियों को मेहंदी
मेरे नाम की मगर…
खुशबू इश्क़ की दावेदार है
संग- संग तुम भी महकती हो
तुम मेरी कुछ तो लगती हो…
नहीं करती
पायलें छम-छम
तेरे कदमों में हां जानाँ…
धड़कनों की लय संग
प्रेम का संगीत तो गुनती हो
तुम मेरी कुछ तो लगती हो…
नहीं बढ़ाती
मेरे नाम की बिंदिया
तुम्हारे ललाट की शोभा…
मेरी मोहब्बत का निशां लिए
अपने मुकद्दर पर तो चहकती हो
तुम मेरी कुछ तो लगती हो…
नहीं मिले
मौसम मेरे साथ के
तुम्हें तो क्या…
बारिशें भिगोती हैं तुमको
तुम गीली मिट्टी सी बहकती हो
तुम मेरी कुछ तो लगती हो…
मांग सजती नहीं
तुम्हारी मेरे नाम के
सिंदूर से माना…
तुम्हारी रचनाएँ रंगी हैं मेरे प्रेम से
अनेक रंगों से मुझ को रचती हो
तुम मेरी कुछ तो लगती हो…
नहीं बनी
मेरी अर्द्धांगिनी
मैं तुम्हें रुकमणी ना कर सका…
मेरे मन मन्दिर में
कृष्ण की राधा सी जचती हो
तुम मेरी कुछ तो लगती हो !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
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