हम ज़िंदा तो हैं मगर
ज़िंदगी से उकताए हैं
समंदर से पार पाकर साहिल के ठुकराए हैं
वो जो रौशन कर रहा है
महफिलों को गैरों की
हम उसी के इंतज़ार में घर को सजाए हैं
कितने पैवंद लगाएं और
इस जिस्म के लिबास पर
लेकर सिर से पांव तलक ज़ख्मों से नहाए हैं
जंतर-मंतर दुआ-इबादत
गंडे -ता’वीज़ जादू-टोना
उसको पा लेने का हर टोटका आजमाए हैं
हस्सास दिल अच्छे आमाल
कुछ भी तो काम नहीं आता
यूँ लगता है किसी बद-दु’आ की ज़द में आए हैं !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’