ऐसा माना जाता है कि इस विनय-चालीसा और हनुमान-चालीसा को पढ़ने से बाबा की आराधना हर रूप में पूर्ण होती है और जो भी भक्तजन हृदय से नीम करोली बाबा को याद करते हुए विनय चालीसा का पाठ करते हैं, उनके अभीष्ट की सिद्धि अवश्य होती है। बाबा प्रेम और करुणा की साक्षात मूर्ति हैं उनके स्मरण मात्र से ही कष्टों का निवारण होता है। कहते हैं कि विनय चालीसा पढ़ने से बाबा की अनुकंपा, कृपा बहुत सहज ही प्राप्त हो जाती है।
वैसे तो नीम करोली बाबा को हनुमान जी का अवतार माना जाता है और उनके सभी मंदिरों में, आश्रमों में हनुमान चालीसा का ही पाठ किया जाता है, परंतु बाबा नीव करोरी को समर्पित उनके भक्त श्री प्रभु दयाल शर्मा जी द्वारा रचित एक स्तुति है जिसको विनय चालीसा के रूप में जाना जाता है।
विनय-चालीसा
॥ दोहा ॥
मैं हूँ बुद्धि मलीन अति,श्रद्धा भक्ति विहीन।करूँ विनय कछु आपकी,हो सब ही विधि दीन॥
॥ चौपाई ॥
जय जय नीम करोली बाबा।कृपा करहु आवै सद्भावा॥
कैसे मैं तव स्तुति बखानू ।नाम ग्राम कछु मैं नहीं जानूँ॥
जापे कृपा द्रिष्टि तुम करहु।रोग शोक दुःख दारिद हरहु॥
तुम्हरौ रूप लोग नहीं जानै।जापै कृपा करहु सोई भानै॥
करि दे अर्पन सब तन मन धन।पावै सुख अलौकिक सोई जन॥
दरस परस प्रभु जो तव करई।सुख सम्पति तिनके घर भरई॥
जय जय संत भक्त सुखदायक।रिद्धि सिद्धि सब सम्पति दायक॥
तुम ही विष्णु राम श्री कृष्णा ।विचरत पूर्ण कारन हित तृष्णा॥
जय जय जय जय श्री भगवंता।तुम हो साक्षात् हनुमंता॥
कही विभीषण ने जो बानी।परम सत्य करि अब मैं मानी॥
बिनु हरि कृपा मिलहि नहीं संता।सो करि कृपा करहि दुःख अंता॥
सोई भरोस मेरे उर आयो।जा दिन प्रभु दर्शन मैं पायो॥
जो सुमिरै तुमको उर माहि ।ताकि विपति नष्ट ह्वै जाहि ॥
जय जय जय गुरुदेव हमारे।सबहि भाँति हम भये तिहारे॥
हम पर कृपा शीघ्र अब करहु।परम शांति दे दुःख सब हरहु॥
रोक शोक दुःख सब मिट जावै।जपै राम रामहि को ध्यावै॥
जा विधि होई परम कल्याणा।सोई सोई आप देहु वरदाना॥
सबहि भाँति हरि ही को पूजे।राग द्वेष द्वंदन सो जूझे॥
करै सदा संतन की सेवा।तुम सब विधि सब लायक देवा॥
सब कुछ दे हमको निस्तारो।भवसागर से पार उतारो॥
मैं प्रभु शरण तिहारी आयो ।सब पुण्यन को फल है पायो॥
जय जय जय गुरुदेव तुम्हारी।बार बार जाऊं बलिहारी॥
सर्वत्र सदा घर घर की जानो।रूखो सूखो ही नित खानो॥
भेष वस्त्र है सादा ऐसे।जाने नहीं कोउ साधू जैसे॥
ऐसी है प्रभु रहनी तुम्हारी।वाणी कहो रहस्यमय भारी॥
नास्तिक हूँ आस्तिक ह्वै जावै।जब स्वामी चेटक दिखलावै॥
सब ही धर्मन के अनुयायी।तुम्हे मनावै शीश झुकाई॥
नहीं कोउ स्वारथ नहीं कोउ इच्छा।वितरण कर देउ भक्तन भिक्षा॥
केही विधि प्रभु मैं तुम्हे मनाऊँ।जासो कृपा-प्रसाद तव पाऊँ॥
साधु सुजन के तुम रखवारे।भक्तन के हो सदा सहारे॥
दुष्टऊ शरण आनी जब परई।पूरण इच्छा उनकी करई॥
यह संतन करि सहज सुभाऊ।सुनी आश्चर्य करई जनि काउ॥
ऐसी करहु आप अब दाया।निर्मल होई जाइ मन और काया॥
धर्म कर्म में रूचि होई जावे।जो जन नित तव स्तुति गावै॥
आवे सद्गुन तापे भारी।सुख सम्पति सोई पावे सारी॥
होय तासु सब पूरन कामा।अंत समय पावै विश्रामा॥
चारि पदारथ है जग माहि।तव कृपा प्रसाद कछु दुर्लभ नाही॥
त्राहि त्राहि मैं शरण तिहारी।हरहु सकल मम विपदा भारी॥
धन्य धन्य बड़ भाग्य हमारो।पावै दरस परस तव न्यारो॥
कर्महीन अरु बुद्धि विहीना।तव प्रसाद कछु वर्णन कीन्हा॥
॥ दोहा ॥
श्रद्धा के यह पुष्प कछु,चरणन धरी सम्हार।कृपासिन्धु गुरुदेव प्रभु,करी लीजै स्वीकार॥
जय श्री राम। जय हनुमान। जय नीम करोली बाबा।
हनुमान-चालीसा
दोहा :
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
दोहा :
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
सियावर राम चन्द्र की जय। पवनसुत हनुमान की जय।
नीम करोली बाबा कौन थे।
नीम करोली बाबा राम जी के परम भक्त थे उन्होंने अपने जीवन काल में अनेकों ऐसे दिव्य चमत्कार किए थे, जो चमत्कार कोई दिव्य शक्ति या भगवान ही कर सकते हैं।उनको हनुमान जी का अवतार माना जाता है।