माँ कविता | Hindi Poem Maa Mother

माँ कविता Hindi Poem Maa Mother

इस दौर में
जहाँ प्रेम का प्रत्येक रूप
संदेह की दृष्टि से देखा जा सके
वहाँ माँ का प्रेम निसंदेह है

जब बच्चों के प्रेम में
बगैर किसी बाहरी अभिव्यक्ति के
चुपचाप अंतर्मन से खुशी-खुशी
बिना अन्न जल ग्रहण किए
ना जाने कितने उपवास कितने व्रत रखती है
अपने बच्चों के शुभ की कामना करती है

माँ साक्षात एक देवी सी मालूम पड़ती है
पहले खून से सींचती है, दूध से सींचती है
फिर तमाम उम्र अपने निस्वार्थ प्रेम से
ममता की छाँव में दुलारती
चलना सिखाती, दौड़ना सीखती
चिंतित होती, नज़र उतारती
अगर कोई आँच आ ज़ाए
सिंहनी की भांति दहाड़ती है

बच्चों के दुखों में ख़ुद रो पड़ती है
माँ होना एक तपस्या सा लगता है मुझे
माँ साक्षात एक देवी सी मालूम पड़ती है !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’

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