फक़त मैं ग़मों का साथी हूँ उसके,
खुशियों का कर्ज़दार कोई और है।
अंधेरा खींचता है उसे मुझ तलक,
उजालों का किरदार कोई और है।
कातिल़ यादें आयी हैं मेरे हिस्से में,
मेरे महबूब का यार कोई और है।
चन्द लम्हे बा-मुश्किल मुकद्दर हुए,
ज़िंदगी का दावेदार कोई और है।
वो तो टकराया था इश्क़ बताने को,
शतरंज का शहरयार कोई और है।
मैं वारिस हूँ महज़ दर्द की ‘मृणाल’,
जायदाद का हक़दार कोई और है।
समंदर से तो याराना रहा है बरसों,
ये नाराज़ सी मंझधार कोई और है।
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
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