मैं “स्त्रीत्व” खोजती हूं
अपना अस्तित्व खोजती हूं
मैं ईश्वर में जीती हूं
वो नचाता है मैं नाचती जाती हूं
सूर्यास्त के समय जब चंद्रमा पुकारता है
मैं उसके साथ जहाँ-तहाँ भागी जाती हूं
कोलाहल से दूर
बियाबान जंगलों में भटकती हूं
हवाओं से बातें करती हूं
वनों में डोलती हूं, वृक्षों को छेड़ती हूं
मायावी दुनियां को निद्रा में डूबे निष्क्रिय देख
मौन के आनंदपूर्ण संवाद को सुनती हूं
स्याह अंधेरी रातों में
चंद्रमा के प्रतिबिंब से ओत-प्रोत नदी के किनारे बैठ
उसके प्रेमपूर्ण निश्छल राग की कल-कल सुनती हूं
और संग- संग गुनगुनाती हूं
चन्दन की बाहों को
सर्पों के विष की मादकता से झूमते देख
ख़ुद भी मदहोश हो जाती हूं
रजनीगंधा और चमेली की सुगंधों को
अपने नासापुटो से होते हुए
अन्दर उतरते देखती हूं
बारिशों की कुछ बूंदें चुरा
मचलती धरती की बैचैन प्यास को देखती हूं
ईश्वरीय वरदान स्वरूप इस भूलोक पर विघमान
प्रकृति के सौन्दर्य के प्रत्येक रस को चखती हूं
चिड़ियों से पंख उधार लेकर
अनंत आकाश का भ्रमण करती हूं
पर्वतों को लांघते हुए, झरनों का मदिरा पीती हूं
परियों से कहानियाँ सुनती हूं
भूतों के साथ बैठती हूं
कभी प्रेतों संग बतियाती हूं
तितलियों को जगाती हूं, उन्हें फूलों तक ले जाती हूं
उनके निस्वार्थ प्रेम के आदान- प्रदान का दृश्य देख
रोमांच से भर जाती हूं
वन्य जीवों की नक़ल उतार उन्हें चिढ़ाती हूं
मधु रस पान करती हूं
उल्लास और उमंगों के उद्गम की साक्षी बनते हुए
ख़ुद भी उमंग हो जाती हूं
स्वतंत्र, मनचली, अल्हड़
मैं स्वयं में जीती हूं
सपने बुनती हूं, किसी मकड़ी के जाल की भांति
फिर उन्हें तोड़ देती हूं
विजय और पराजय दोनों मेरे
अपार आनन्द में जीती हूं
इस दोहरे और पुरूष प्रधान समाज द्वारा निर्मित
बंधनों और नियमों के विपरीत दौड़ती हूं
कांटा बन सबको चुभती हूं
सांसारिक प्रेम में छली जाने पर भी
प्रेम को सर्वोपरि और ईश्वरीय गुण मानने वाली
मोक्ष को खोजने के लिए प्रेरित घूमती हूं
ऊर्जा को संग्रहित करने को आतुर
जीवन के उस पड़ाव पर आकर ठहरती हूं
जहां संपूर्ण ब्रह्मांड मेरे सहयोग में तत्पर मुझे पुकारता है
मैं उसके पीछे- पीछे दौड़ती चली जाती हूं
अन्तर्मन का चक्कर लगाती हूं
अनूठे रास्ते की ख़ोज में भटकती हूं
आत्मा का साक्षात्कार करती हूं
शून्य में विलीन होती हूं
माया के चक्रों को तोड़ती हूं
हवाओं के रूखों को मोड़ती हूं
वो स्त्रीत्व जो विष्णु द्वारा
दो हिस्सों में बांटकर, आधा शिव, आधा शक्ति हुआ
मैं वो शक्ति तत्व खोजती हूं
मैं “स्त्रीत्व” खोजती हूं !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
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