हिंदी ग़ज़ल औरत | Ghazal In Hindi
आज़ की औरत हूँ पुरानी रिवायतों के बीच से, एक नया आगाज़ हूँ मैं,दबायी जा रही चीख़ों में, एक पुरजोर आवाज़ हूँ मैं। क्यूं सवाल है तुमको, मेरी खिलखिलाती हंसी पर,कोई क़ैद ए मुज़रिम नहीं, हसरत- ए- परवाज़ हूँ मैं। महज़ गुनगुनाहट नहीं, तेरे हुक्म- ए- तामील की,ख़ुद से ख़ुद में थिरकता, एक मुकम्मल साज़ … Read more