Hindi Poem | हिंदी कविता चाँद पर
चाँद कल रातमैंने अपने कमरे की खिड़की सेबादल की इक टुकड़ी कोचन्द्रमा का अंगरक्षक बने देखाऐसा दृश्य पहले भी कई बार देखा है मैंनेपरंतु कल जिज्ञासा वशउधर से गुज़र रहीएक प्रेतात्मा को रोक कर पूछासुनो ! ये चंद्रमा आज़कल पहरेदारोंको साथ लेकर क्यूं निकलता है भ्रमण परउसने कहा क्यूं तुम्हें नहीं पताचंद्रमा की ज़मीन कासौदा … Read more