ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
।
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं, अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं।
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख।
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ,
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ।
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा, तिरे सामने आसमाँ और भी हैं।
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है, मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी।
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का,
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है।
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