इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल, दुनिया है चल-चलाव का रस्ता सँभल के चल
।
तू कहीं हो दिल-ए-दीवाना वहाँ पहुँचेगा, शम्अ होगी जहाँ परवाना वहाँ पहुँचेगा।
ख़ुदा के वास्ते ज़ाहिद उठा पर्दा न काबे का, कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफ़िर-सनम निकले।
बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला, क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में।
लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में, किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में
।
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी,
जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी
।
कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिए, दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में।
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270+Ishq Shayari In Hindi | इश्क़ शायरी
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