"रात यूँ दिल में तिरी खोई हुई याद आई,
जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए"
"और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा,
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा"।
"दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है,
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है"।
"बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते,
तुम अच्छे मसीहा हो शिफ़ा क्यूँ नहीं देते"।
"न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ,
इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं"।
"गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले,
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले"।
"दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के,
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के"।
"इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन,
देखे हैं हम ने हौसले परवरदिगार के"।
"तुम आए हो न शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है,
तलाश में है सहर बार बार गुज़री है"।
"कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब,
आज तुम याद बे-हिसाब आए"।
"जानता है कि वो न आएँगे,
फिर भी मसरूफ़-ए-इंतिज़ार है दिल"।
"न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है,
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है"।
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फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के 91 शेर/शायरी
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