"कलम, इश्क़ के मौसम से, ख़ुशनुमा हो रही है,
तहरीर, सावन दर सावन, अब जवां हो रही है।"
"दरख़ास्त ख़ुदा के दर से ये लिख कर लौट आयी,
कि इश्क़ में महबूब का हर गुनाह मुआफ़ है ताबीर।"
बाक़ी सब जाने दो, बताना ज़रा, एक ऐब मेरा, सिवा इसके, कि तुमसे इश्क़ है, बे-खौफ है।
तेरे इश्क़ की, मुझपर, यूँ, खुमारी होती गयी,
हर नजर, फिर मोहब्बत पर, भारी होती गयी।
दफायें खोजती रहती, महफ़िल, तोहमतों को,
तहरीरें, मेरे ख़िलाफ़, फिर जारी होती गयी।
इश्क़ का बही खाता, खुलने के बरस भर से ही,
जिंदगी मुझपर, दिन-ब-दिन उधारी होती गयी।
बरक़रार है, आज भी, उसके लम्स का सुरूर,
जुदाई के एहसास से बदहवासी तारी होती गयी।
वो लहराता रहा, हवा में, आबाद दामन की तरह,
मैं हमसफ़र होने की चाह में, किनारी होती गयी।
ना जाने कब बन बैठा, वो मेरी जिंदगी का देवता,
ना जाने कब इश्क़ करते-2 मैं, पुजारी होती गयी।
ख़ुदा कर देना इंसान को इश्क़ में, गुनाह है 'ताबीर'
सजा लंबी होती गयी, इश्क़ मेरी बीमारी होती गयी।
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270+Ishq Shayari In Hindi | इश्क़ शायरी
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