हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं।
क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है, हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है।
यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तिरे बग़ैर,
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
।
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं, कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं।
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है,
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है।
जो तूफ़ानों में पलते जा रहे हैं, वही दुनिया बदलते जा रहे हैं।
अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल, हम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया
।
इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का, क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम
।
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270+Ishq Shayari In Hindi | इश्क़ शायरी
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