तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो,
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है।
अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो, तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
।
कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे, कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था
।
तुम्हारा नाम आया और हम तकने लगे रस्ता, तुम्हारी याद आई और खिड़की खोल दी हम ने
।
तुम्हें भी नींद सी आने लगी है थक गए हम भी, चलो हम आज ये क़िस्सा अधूरा छोड़ देते हैं ।
तमाम जिस्म को आँखें बना के राह तको, तमाम खेल मोहब्बत में इंतिज़ार का है
।
तुम्हारे शहर में मय्यत को सब कांधा नहीं देते, हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं
।
ये सोच कर कि तिरा इंतिज़ार लाज़िम है,
तमाम उम्र घड़ी की तरफ़ नहीं देखा
।
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