शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को, मैं देखता रहा दरिया को तिरी रवानी को।
आख़री हिचकी तिरे ज़ानूँ पे आए, मौत भी मैं शाइराना चाहता हूँ।
पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला, मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा।
मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देना, यक़ीं आ जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है।
पूछ लेते वो बस मिज़ाज मिरा,
कितना आसान था इलाज मिरा।
कौन सी बात है तुम में ऐसी, इतने अच्छे क्यूँ लगते हो।
जहाँ में होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा, तिरे लबों पे मिरे लब हों ऐसा कब होगा।
इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से,
मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यूँ नहीं करते।
सिर्फ़ उस के होंट काग़ज़ पर बना देता हूँ मैं, ख़ुद बना लेती है होंटों पर हँसी अपनी जगह।
तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो, आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना।
क्यूँ मेरी तरह रातों को रहता है परेशाँ, ऐ चाँद बता किस से तिरी आँख लड़ी है।
शाम होते ही चराग़ों को बुझा देता हूँ, दिल ही काफ़ी है तिरी याद में जलने के लिए।
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे, मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे।
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से, तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिए बनाया है।
तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊँगा, यूँ करो जाने से पहले मुझे पागल कर दो।
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